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कविता

पानी की तरह

प्रेमशंकर शुक्ल


पानी की तरह
पानी पर फैल रहा है
मेहनतकश स्त्री का गीत

गीत में है पानी की आवाज
और गा रही स्त्री के कंठ में है
पानी की आदिम तरलता

गीत और पानी का
पानी जितना पुराना संबंध जो है

मगनमन स्त्री गा रही है
नदी बह रही है भरे-मन
गीत की पुकार से।
 


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